Saturday, November 24, 2007

कुछ भी नहीं रहा जब, तो यह भी नहीं रहेगा

मैं करीब 16-17 वर्ष का रहा होऊँगा तब। ग्रीष्म ॠतु का आगमन और गेहूँ के लहलहाते खेत मन को एक अनोखे कुँवारे हर्ष से ओत-प्रोत कर देते थे। बस एक ही समस्या थी: गेहूँ के पराग से एलर्जी। वहाँ फ़सल की कटाई आरंभ हुई नहीं कि साँस उखड़ने लगती और मैं चल देता अपने नाना के यहाँ…पहाड़ों में जहां गेंहूँ न के बराबर होती है। कभी-कभी मन निराश हो जाता। उस समय मेरे नाना मुझे Theodore Tilten की कविता "Even This Shall Pass Away" का वह उर्दू रूपांतर सुनाते जो उन्होंने स्वयं किया था और मुझे आज तक याद है। अपने नाना के साथ बिताये क्षण, उनका विवेक, और हृदय के हर अवसाद को कम कर देने का सामर्थ्य रखने वाली यह कविता मुझे आज भी स्मरण हैं, मानो कल ही की बात हो। वही कविता आप सब के साथ आज बाँट रहा हूँ । मूल कविता नीचे प्रस्तुत है, जिसे आप document box के नीचे दिये गये विकल्पों द्वारा, चाहें तो डाउन्लोड भी कर सकते हैं। उर्दू रूपांतर मेरी आवाज़ में मूल कविता के नीचे है।



2 comments:

पारुल "पुखराज" said...

bahut khuub....sachhayi jaantey huey bhi bhuul baithtey hain hum.....KUCH BHI NAHI RAHA JAB YE BHI NAHI RAHEGAA...aapki aavaz me aur bhi acchha aur sachha lagaa,.

Chandra S. Bhatnagar said...

Thank you Parul Ji. In fact, this is the problem with all of us: forgetfulness of the truth. And that, to me, is the root of all sin and misery too. I am happy that you liked the poem and hope that we all can always remember the one abiding truth: Even this shall pass away.